Sunday, January 27, 2013

जनता की मांग पे

एक पार्टी में एक सज्जन को अभी कुछ दिनों पहले उपाध्यक्ष बनाया गया है और कहा जा रहा की वो अब पार्टी में न. २ की पोजिसन पे हो गये, पर मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ है, क्यों के उपाध्यक्ष बनने से पहले भी वही न. २ पे थे, खैर ये तो रही उस पार्टी की अंदरूनी बात वे जो चाहे वो करें हमे उससे क्या,

हमे तो ये कहना है की जब वो उपाध्यक्ष बने तो उसके बाद सारे शहर को पोस्टर बैनर से भर दिया उनके दल के लोगों ने की "जनता की भारी की मांग को ध्यान में रखते हुए" माननीय फलां को उपाध्यक्ष बनाया गया, कमोबेश यही हेडलाइंस अखबारों में भी पढने को मिलीं अगले सुबह|

ये सब पढ़ के मुझे ये याद आया के सहर के कुछ सिनेमाघर जिनमे B या C GRADE की फिल्म्स जैसे- "जंगली जवानी" या "एक रात की कली" आदि लगती हैं, तो ऐसे ही पोस्टर पूरे शहर में लगते हैं की "जनता की भारी मांग पर भीड़पूर्ण प्रदर्शन" तारीख ** से |

लेकिन ये बात हमे कभी समझ नहीं आई की ना तो मैंने ही कभी ऐसी मांग की और ना ही जिन्हें मैं जानता हूँ ना ही उन्होंने कभी ऐसी मांग की और ना ही उनके जानने वालों ने , तो भइया कहा से आ गयी "जनता की मांग"?????

अब उन सज्जन को किस जनता की मांग पे उपाध्यक्ष बनाया गया ये तो सब लोग समझ ही गये होंगे ऊपर की कहानी पढने के बाद..:-D
 

*प्रेरणा आलोक पुराणिक जी से प्राप्त*

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