Sunday, January 27, 2013

मजहबी विवादों से व्यथित कैफ़ी आज़मी जी का शेर

बरसों पहले कैफ़ी आज़मी साहब ने लखनऊ में दो फिरकों के बीच होने वाले विवाद से आहत होकर एक नज़्म कही थी. आज ज़रूरत है कि हम उसे एक बार फिर पढ़ें और समझें.

अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ, लहू तो नहीं 
ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं 
यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहले 
ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं 
चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के 
बग़ौर देखो ये इस्लाम का लहू तो नहीं :(

No comments:

Post a Comment