शाम जो गंगा किनारे बैठा तो ख़्याल आया,
गंगा की लहरें जिंदगी जैसी ही तो हैं,
तेज लहरों जैसी कभी मुश्किलें आतीं हैं,
तो कभी शांत प्रवाह सा जिन्दगी बहती है।
गंगा की लहरें जिंदगी जैसी ही तो हैं,
तेज लहरों जैसी कभी मुश्किलें आतीं हैं,
तो कभी शांत प्रवाह सा जिन्दगी बहती है।
जैसे बरखा आने पे गंगा बलखाती है,
वैसे खुशियां आने पे जिन्दगी इठलाती है,
गंगा की गहराइयों की कोई माप नहीं,
जिन्दगी के झंझावातों की भी कोई परिमाप नहीं।
वैसे खुशियां आने पे जिन्दगी इठलाती है,
गंगा की गहराइयों की कोई माप नहीं,
जिन्दगी के झंझावातों की भी कोई परिमाप नहीं।
गंगा का विस्तार कम हो जाता है गरमियों में,
जिन्दगी झुलस जाती है दुख के दिनों में,
जरा गौर से देखें तो,
कितनी मिलती कहानी है गंगा और जीवन की,
उतार चढ़ाव के बाद भी,
दोनों की फितरत है बढ़ते रहने की।
कितनी मिलती कहानी है गंगा और जीवन की,
उतार चढ़ाव के बाद भी,
दोनों की फितरत है बढ़ते रहने की।
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