अभी हाल ही मेँ एक कवि ने अपनी नयी रचना में एकदम नयी ढँग की कल्पना प्रस्तुत की है-
कवि की कल्पना मेँ नायिका अपने बलमा को बहुत ही उत्तेजक भाव मेँ कहती है कि
"फायर बिग्रेड मँगवा दे तू,
अँगारोँ पर हैँ अरमाँ,
ओ बलमा ओ बलमा ओ बलमा,
तेरा रस्ता देख रही हूँ,
सिगड़ी पे दिल सेँक रही हूँ,
आ परदेशी मोरे बलमा॥"
ऐसा लगता है कि कवि की कल्पना किसी और भाव मेँ डूबी हुयी है परन्तु कल्पना को सबके साथ परिवार मेँ बैठ के सुना जा सके अतः कवि ने द्विअर्थी शब्दोँ के रुप मेँ 'फायर बिग्रेड और सिगड़ी' शब्दोँ का प्रयोग किया है।
कवि ने कल्पना की हदोँ को पार करते हुए एक ऐसे गीत की रचना की है जो जल्द ही आज के युवा वर्ग के जुबाँ पे छा जाएगा और ये भी हो सकता है कि कुछ बुजुर्ग जो खुद को युवा समझते हैँ वे भी फुसफुसाते हुए इस गीत को गाएँ।
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