कुमार विश्वाश जी ने लिखा है फेसबुक पे--
"क्या हम इतने असहिष्णु हो गए हैं कि किसी के मरने पर भी उसे गाली दे सकते हैं ? शायद ये भारत,भारतीयता और हिंदुत्व तो नहीं सिखाता ! कम से कम मेरा हिन्दुत्व और भारत तो मुझे ये नहीं सिखाता ! रावण के धराशायी होने पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी उन्हें प्रणाम करने गए थे और अनुज लक्ष्मण से कहा था कि इन से "राजनीती" सीखो ! उम्मीद है आप सब भी भारतीय हैं !"
यह उन्होंने इश लिए लिखा क्यों के बालासाहेब ठाकरे की मौत के बाद काफी लोगो ने हर्ष जाहिर किया था पर क्या कुमार जी बताएँगे की जिस दिन कसाब को फांसी दी जाएगी क्या उष दिन भी वो यही कहेंगे ?
शायद नही क्यों की कसाब और अफजल गुरु आतंकवादी हैं पर जरा कुमार साहब उन परिवारों से पूछे जो ठाकरे परिवार के कारण अपना धंधा पानी छोड़ने को मजबूर हुआ उनके लिए ठाकरे एक आतंक से कम नही थे |
वो परिवार हर्ष क्यों ना मनाये ??????? और इश हर्ष को मनाने से वे असहिष्णु नही हो जाते |
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Saturday, November 17, 2012
Monday, November 5, 2012
कवि की कल्पना
अभी हाल ही मेँ एक कवि ने अपनी नयी रचना में एकदम नयी ढँग की कल्पना प्रस्तुत की है-
कवि की कल्पना मेँ नायिका अपने बलमा को बहुत ही उत्तेजक भाव मेँ कहती है कि
"फायर बिग्रेड मँगवा दे तू,
अँगारोँ पर हैँ अरमाँ,
ओ बलमा ओ बलमा ओ बलमा,
तेरा रस्ता देख रही हूँ,
सिगड़ी पे दिल सेँक रही हूँ,
आ परदेशी मोरे बलमा॥"
ऐसा लगता है कि कवि की कल्पना किसी और भाव मेँ डूबी हुयी है परन्तु कल्पना को सबके साथ परिवार मेँ बैठ के सुना जा सके अतः कवि ने द्विअर्थी शब्दोँ के रुप मेँ 'फायर बिग्रेड और सिगड़ी' शब्दोँ का प्रयोग किया है।
कवि ने कल्पना की हदोँ को पार करते हुए एक ऐसे गीत की रचना की है जो जल्द ही आज के युवा वर्ग के जुबाँ पे छा जाएगा और ये भी हो सकता है कि कुछ बुजुर्ग जो खुद को युवा समझते हैँ वे भी फुसफुसाते हुए इस गीत को गाएँ।
कवि की कल्पना मेँ नायिका अपने बलमा को बहुत ही उत्तेजक भाव मेँ कहती है कि
"फायर बिग्रेड मँगवा दे तू,
अँगारोँ पर हैँ अरमाँ,
ओ बलमा ओ बलमा ओ बलमा,
तेरा रस्ता देख रही हूँ,
सिगड़ी पे दिल सेँक रही हूँ,
आ परदेशी मोरे बलमा॥"
ऐसा लगता है कि कवि की कल्पना किसी और भाव मेँ डूबी हुयी है परन्तु कल्पना को सबके साथ परिवार मेँ बैठ के सुना जा सके अतः कवि ने द्विअर्थी शब्दोँ के रुप मेँ 'फायर बिग्रेड और सिगड़ी' शब्दोँ का प्रयोग किया है।
कवि ने कल्पना की हदोँ को पार करते हुए एक ऐसे गीत की रचना की है जो जल्द ही आज के युवा वर्ग के जुबाँ पे छा जाएगा और ये भी हो सकता है कि कुछ बुजुर्ग जो खुद को युवा समझते हैँ वे भी फुसफुसाते हुए इस गीत को गाएँ।
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